दोस्तो बहुत दिनों तक दूर रहने के लिए माफ़ी चाहता हूं, अब लौटा हूं तो कुछ अलग रंग हैं और एक नया एहसास है, कुछ नए तजरूबे हैं, उन्हें आप से बांटने की कोशिश करूंगा। - रज़ी
रोड पर बना पार पथ पार करते हुए
आज फिर उस जवां अजनबी पर निगाहें पड़ीं
ज़िंदगी के मज़ालिम से हारा हुआ
आज वह चूर सा दिख रहा था
उस के बोसीदा मलबूस से
कुछ अजब तरह की बू आ रही थी
बाल बिखरे हुए, आंखें पुरनम सी थीं
गालों की झुर्रियों में
सुर्ख सा कर्ब अंगड़ाईयां ले रहा था
एक बच्चा उसे कोई पागल समझ कर
चन्द कंकर के तोहफे अता कर रहा था
जाने किस फ़िक्र में उसकी आंखें
पास की उस इमारत को छेदे चली जा रही थीं
जहां पहली दफ़ा उसको देखा था मैं ने
वह कुछ जवानों को समझा रहा था
ख़ैर और शर के, रिश्वत व ज़ुल्म के
मायने व मतलब बता रहा था
चन्द लम्हों के वक़्फे से जब मैं वापस हुआ
मैं ने ये भी सुना
लोग आपस में यूं लबकुशा हो रहे थे
‘’अपना ये बोस भी क्या अजब आदमी है
इस सदी में भी पागल
किस पुरानी सदी की कहानी सिखाने की ज़िद कर रहा है’’
‘’अरे छोड़ो ना यार तुम भी
किस दिवाने की बातें किए जा रहे हो
आओ बाहर चलें, देखें बाज़ार को
आज फिर कुछ मुनाफ़े की उम्मीद है’’
Wednesday 22 February 2012
Friday 24 June 2011
बिला उनवान
हुस्न ऐसा कि सच कहें गालिब
जिंदगी अपनी वार देते तुम
फिर अचानक से उसकी याद आई
लफ्ज़ तस्वीर में बदलने लगे
लोग पढ़ते रहे सलात व दुआ
हम तसव्वुर मे उनकी खोने लगे
जिंदगी अपनी वार देते तुम
फिर अचानक से उसकी याद आई
लफ्ज़ तस्वीर में बदलने लगे
लोग पढ़ते रहे सलात व दुआ
हम तसव्वुर मे उनकी खोने लगे
Monday 10 January 2011
ये पल...
याद आएंगे ये चुलबुले से कुछ पल
दुनिया के झमेलों से थक हार कर
जब उठाएंगे पुरानी डायरी
सच बहुत याद आएंगे ये पल
सुबह बहुत देर से होती थी अपनी
चांद बहुत देर तक रौशन रहता था अपने साथ
पहले सूरज से अपनी दोस्ती थी
मगर अब बड़े हो गए थे हम
चांद के साथ अपनी अच्छी बनने लगी थी
सच बहुत याद आएंगे ये पल
जब थक हार कर लौटेंगे घर
ज़िंदगी के झमेलों से उक्ता कर
जब पुराना बक्सा खोलेंगे
लबों पर मुस्कुराहट और आंखों में आंसू
रेंगने लगेंगे खुद ही
बिछडे परिंदों की याद में
डाल-डाल, रात-रात साथ-साथ
उडते रहते थे जिनके संग
सच बहुत याद आएंगे ये पल
जब थक हार कर उठाएंगे पुराना अल्बम
मगर तब
जिंदगी की ज़रूरतें उसे देखने की फुर्सत नहीं देंगी!!!
Tuesday 4 January 2011
एहसास
सोच रहा हूं
ये साल का नया सूरज है
या फिर तुमने शबनम से अपना चेहरा धोया है
ये चांद की ठंड़ी रौशनी है
या फिर तुम्हारी आंखें मेरे चेहरे पर बिछी हैं
ये मुरादों का कोई तारा टूटा है
या फिर तुम धीरे से मुसकुराई हो
ये हवा के झोंकों से होने वाली सरसराहट है
या फिर तुम चुपके से मेरे कानों में सरगोशी कर रही हो
ये आसमान के दामन में चमकता हुआ चंदा है
या फिर तुम्हारा टूटा हुआ कंगन आसमान ने अपने आंचल में छुपा लिया है
ये बारिश के पहले होने वाली बदली है
या फिर तुनने अपने ज़ुल्फों को हवा में लहराया है
ये आंसू मेरे गालों पर रेंग रहे हैं
या फिर तुम्हारी सांसों की गर्मी मेरे रूख़्सारों पर महसूस हो रही है
सोचता हूं
तुम होती तो बतला देतीं
अकेले कितना मुश्किल है सब कुछ समझ पाना …!!!!
Saturday 1 January 2011
नए साल पर
नए साल पर जलाई गईं
हज़ारों फुलझडियां
दाग़े गए
हज़ारों पठाके
नशे में धुत हो कर
नाचा पूरा जहान
मगर
चौराहे के उस सूखे पीपल के नीचे
वो बूढ़ा आज रात भी
अपनी मरी हुई लाग़र सांसों से
बुझती आग को जलाने की कोशिश में
ठिठुर ठिठुर का रात गुज़ार दिया
क्यों नहीं सुनाई दे रही हैं दुनिया को
उसकी मरी हुई खांसने की धमक!!!!
Saturday 4 December 2010
मौसीक़ी की धुनों पर थिरकते लफ़ज़ों का ख़ालिक- इर्शाद कामिल
अक्सर ज़िंदगी में कुछ ऐसा हो जाता है जिसके बारे में आदमी बहुत ज़्यादा सोचे नहीं होता है। चाहत व आरज़ू कुछ होती है और किस्मत कुछ और दिला देती है। हिंदी साहित्य में पीएचडी की डिग्री हासिल करने वाले इर्शाद कामिल ने भी शायद ये नहीं सोचा होगा कि वह बॉलीवुड की फ़िल्मों में गाने लिख कर नाम कमाएंगे, लोगों के दिलों और उनकी धडकनों पर क़ब्जा करेंगे मगर किस्मत को तो यही कुछ मंज़ूर था और इसी लिए जब वह दो हफ्ते के लिए मुम्बई आए तो फिर लगातार सात महीने वहीं रूक गया। और फिर यहां से शुरू होने वाले सफर ने इर्शाद को एक गीतकार बनने का मौका दिला दिया।
इर्शाद कामिल पंजाब में पले बढ़े। 1998 में उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत टीवी के लिए लिखने से की। ‘ना जाइओ परदेस’ और ‘कहां से कहां तक’ उनके ही क़लम से लिखे गए हैं। मुम्बई में उन्हें सबसे पहला काम मनीश गोस्वामी की कर्तव्य के डाइलॉग लिखने का मिला। उसके बाद पंकज कपूर के सीरियल दृशांत भी इन्हीं का कारनामा है। इनका टीवी जगत में जो हालिया काम है वह है ज़ी पर आने वाले एक नए प्रोग्राम लव मैरेज के डाइलॉग्स। टीवी ही नहीं इर्शाद कामिल ने एक जर्नलिस्ट के तौर पर इंडियन एक्सप्रेस में भी काम किया है। मगर शायद ये उनकी मंज़िलें नहीं थीं, उनकी मंज़िल तो कहीं और थी। उन्हें तो एक गीतकार के रूप में कामयाबी हासिल करनी थी। चमेली फिल्म में पहली बार उन्हें गाने लिखने का मौक़ा मिला और पहली ही फिल्म में उन्होंने ये एहसास दिला दिया कि वह एक बड़े गीतकार के रूप में बॉलीवुड में अपना नाम पैदा करेंगे। इसके बाद उन्होंने जल्द ही उसे साबित भी कर दिया। एक के बाद एक कई फिल्में उन्हें आफर हुईं और वह दबे-दबे, आहिस्ता-आहिस्ता कदमों के साथ अपनी मनज़िल को बढ़ते रहे। सोचा ना था, आहिस्ता-आहिस्ता, शब्द और करम में मिली थोड़ी सी सफलताओं ने उन्हें जब वी मेट जैसी सुपरहिट भी दिला दी। इस फिल्म में इर्शाद कामिल ने ख़ूब नगाड़ा बजाया, और फिर कामयाबी की नित नई मंज़िलें छूते चले गए। लब आज कल ने उन्हें चोर बज़ारी के लिए फिल्म फेयर अवार्ड दिला दिया। अजब प्रेम की गज़ब कहानी ने उनकी मक़बूलियत में चार चांद लगा दिया।
अगर उनके गाने देखे जाएं तो ये अंदाज़ा बहुत आसानी के साथ लगाया जा सकता है कि वह एक कामयाब गीतकार हैं और एक सलाहियत मंद गीत की सारी ख़ासियत उनमें है। उन्हों ने हर तरह के गाने लिखे। हालांकि वह ख़ुद कहते हैं कि प्यार, इक़रार, दिल, धड़कन और जिगर जैसे लफ़्जों के लिए उनकी ड़िक्शनरी में कोई जगह नहीं है। उनका मानना है कि प्यार की परभाषा और इस की हर तस्वीर को इतने गानों में बयान कर दिया गया है कि अब कुछ बचा ही नहीं है। हालांकि उन्होंने अपनी फिल्मों में सब कुछ लिखा है। जहां आओ मीलों चलें ना हो पता जाना कहां, से प्यार और एक अच्छे हमसफर के साथ होने की खुशी को ब्यान किया है वहीं उन्होंने हम जो चलने लगे चलने लगे हैं ये रास्ते जैसा गाना लिख कर नाज़ुक एहसास की अच्छी तर्जुमानी की है। आओगे जब तुम ओ साजना के ज़रिए दूरियों के दर्द को अलफ़ाज़ों का रूप दिया है, ये दूरियां मिट जानी हैं दूरियां जैसे गाने के ज़रिए प्यार के हौसले को मज़बूत किया है। कैसे बताएं क्यों तुझको चाहें और चोर बज़ारी दो नैनों की लिख कर मासूम मुहब्बत की दास्तान बयान करने की कामयाब कोशिश की है। वहीं नगाड़ा बजा, वो यारा ढ़ोल बजाके, टुविस्ट, आहूं आहूं आहूं जैसे सुपर हिट गाने लिख कर लोगों को ड़ांस फलोर पर थिरकने के लिए मजबूर कर दिया है। ज़िन्दगी के नाज़ुक जज़्बातों को भागे रे मन कहीं जानूं किधर जाने ना और ये इश्क हाय जन्नत दिखाए के ज़रिए बयान किया।
इर्शाद कामिल की एक ख़ास बात और है वह ये कि उनके यहां अपने सुनने वालों का पूरा ख़्याल है, वह जानते हैं कि आज कई लोग इंग्लिश के कामन लफ़्ज़ों को आसानी से समझ सकते हैं जबकि अगर ठोस हिंदी या उर्दू के अलफ़ाज इस्तेमाल किए जाएं तो इनका समझना ज़रा मुश्किल है। इसी लिए वह पंजाबी, हिंदी, उर्दू और इंग्लिश शब्दों का बहुत अच्छा इस्तेमाल करते हैं। और यही उनकी कामयाबी का भी राज़ है।
इसमें कोई शक नहीं कि जिस रफ्तार के साथ इर्शाद कामिल तरक्की कर रहे हैं आने वाले दिनों में वह हिन्दुस्तानी फिल्मों के महान गीतकार बनकर उभरेंगे।
Thursday 23 September 2010
आवाज़ें आती हैं....
सन्नाटों को चीर कर
आवाज़ें आती हैं
मत ताको नील गगन के चंदा को
मोती की तरह बिखरे सितारों को
देखो वह दूर परबत से लगे
झोंपड़े पर जहां
टिमटिमा रहा है इक दिया
बुढ़िया दुखयारी ठंड़ से
थर थर कांप रही है !
हां, आवाज़ें आती हैं
बारिश की बूंदों के शोर को दफ्न करके
तुम झूम रहे हो
अंबर का अमृत पी कर
वह दोखो,
फूस का छोटा सा इक घर
भीग गया है इन बौछारों से
और दहक़ां का कुंबा
घर से पानी काछ रहा है
सुनो !
बीत गए वह दिन
जब तुम अपने आप में सिमटे होते थे!!!
(दहक़ां : kisan)